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कान्हा कान्हा आन पड़ी मै तेरे द्वार

कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
मोहे चाकर समझ निहार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार………..

तू जिसे चाहे वैसी नहीं मैं
हां तेरी राधा जैसी नहीं मैं
फिर भी तो ऐसी वैसी नहीं मैं
कृष्णा मोहे देख तो ले एक बार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार…….

बूंद ही बूंद मैं प्यार की चुनकर
प्यासी रही पर लाई हूं गिरधर
ऐसे ना तोड़ो आश की गागर
मोहना ऐसी काकरिया ना मार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार……..

माटी करो या घर की बना लो
तन मेरे को चरणों से लगा लो
मुरली समझ आंखों से उठा लो
सोचो सोचो कुछ अब ना कृष्ण मुरार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार………

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